पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दफ़्तर में विशेष अधिकारी रहे दुलत के मुताबिक 2002 में फ़ारूक़ अब्दुल्ला को उपराष्ट्रपति और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाने की योजना चल रही थी. यह प्रस्ताव राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और प्रधान सचिव ब्रजेश मिश्र ने प्रधानमंत्री वाजपेयी की तरफ़ से फ़ारूक़ अब्दुल्ला के सामने तब रखा था जब वह दुलत के घर पर डिनर कर रहे थे. इसके बाद वाजपेयी और आडवाणी ने भी इस सिलसिले में फ़ारूक़ अब्दुल्ला से बात की थी. वाजपेयी का इरादा था फ़ारूक को दिल्ली लाना ताकि वह फिर से मुख्यमंत्री नहीं बन पाएं और उमर भी इससे ख़ुश रहें.
यह प्रस्ताव फ़ारूक़ को तब दिया गया जब लगा कि तब के उपराष्ट्रपति कृष्णकांत 11वें राष्ट्रपति बन जाएंगे. लेकिन बाद में आडवाणी ने कृष्णकांत को राष्ट्रपति बनाने के प्रस्ताव का विरोध किया. फ़ारूक़ को दिल्ली में बैठी एनडीए सरकार पर भरोसा नहीं था कि वे अपना वादा पूरा करेंगे. उनकी शंका सच भी साबित हुई. फ़ारूक़ को लेकर एनडीए में माना गया कि वह एक गंभीर शख़्स नहीं हैं. ख़ास तौर से संघ परिवार को उनका नाम पसंद नहीं आया. फिर फ़ारूक को दिल्ली में कैबिनेट मंत्री बनाने की बात भी हुई, लेकिन वह भी नहीं हो पाया.
उधर एपीजे अब्दुल कलाम चेन्नई की अन्ना यूनिवर्सिटी में 10 जून 2002 को 'विज़न टू मिशन' पर अपना नौवां लेक्चर दे रहे थे. जब वह शाम को लौटे तो अन्ना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर ए कलानिधि ने उनसे कहा कि उनके दफ़्तर में लगातार आपसे बात करने के लिए फ़ोन आ रहे थे. जब कलाम अपने कमरे में पहुंचे तब भी फ़ोन की घंटी बज रही थी. उन्होंने फ़ोन उठाया तो आवाज़ आई, "प्रधानमंत्री आपसे बात करना चाहते हैं." जब तक प्रधानमंत्री फ़ोन पर आते तब तक कलाम के मोबाइल पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का फ़ोन आ चुका था. नायडू ने कहा कि पीएम का आपके पास एक इंपॉर्टेंट कॉल आने वाला है. प्लीज़ ना मत कहिएगा. इतनी ही देर में दूसरे फ़ोन पर वाजपेयी की आवाज़ सुनाई दी.
वाजपेयी ने पूछा, "कलाम साहब, आपका काम कैसा चल रहा है?" जवाब मिला, "बहुत बढ़िया. फैंटास्टिक." वाजपेयी ने कहा, "मेरे पास आपके लिए एक बड़ी अहम ख़बर है. अभी मैं एनडीए में सहयोगी दलों की बैठक से आ रहा हूं और हमने सर्वसम्मति से तय किया है कि देश आपको राष्ट्रपति के तौर पर चाहता है. आपकी सहमति चाहिए. मुझे रात को इसका एलान करना है, मुझे केवल हां चाहिए, न नहीं."
कलाम ने कहा, "वाजपेयी जी मुझे दो घंटे का वक़्त दीजिए. इसके साथ ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए दूसरे राजनीतिक दलों की सहमति भी चाहिए होगी." वाजपेयी ने कहा, "आपके तैयार होने के बाद हम सबसे सहमति बनाने पर काम करेंगे."
दो घंटे बाद कलाम ने फ़ोन किया, "वाजपेयी जी मुझे यह बहुत महत्वपूर्ण मिशन लगता है, लेकिन मैं सभी पार्टियों की तरफ़ से उम्मीदवार बनना चाहता हूं." वाजपेयी ने कहा कि हम इस पर काम करेंगे.
पंद्रह मिनट में यह ख़बर देश भर में आग की तरह फैल गई. वाजपेयी ने उसी दिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को फ़ोन किया. सोनिया गांधी ने वाजपेयी से पूछा कि क्या एनडीए में इस पर फ़ैसला हो गया है? वाजपेयी ने हां कहा. सोनिया गांधी ने कांग्रेस और अपने सहयोगी दलों से सलाह-मशविरा के बाद 17 जून 2002 को कलाम को समर्थन देने का एलान किया. सिर्फ़ लेफ़्ट पार्टियों ने अपना उम्मीदवार अलग से खड़ा करने की बात की. अगले दिन के अख़बारों और न्यूज़ चैनलों पर सिर्फ़ यही ख़बर थी और बहुत सारे सवाल भी थे, कि क्या एक ग़ैर-राजनीतिक शख़्सियत राष्ट्रपति पद की ज़िम्मेदारी को संभाल पाएगी?
तब बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता माने जाने वाले प्रमोद महाजन को कलाम का इलेक्शन एजेंट बनाया गया और कलाम के दिल्ली में एशियाड गांव के फ़्लैट नं. 833 को कैम्प ऑफिस में तब्दील कर दिया गया. प्रमोद महाजन ने कलाम को सभी सांसदों को एक चिट्ठी लिखने को कहा जिसमें कलाम अपने विचार और योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी देते. ये चिट्ठी दोनों सदनों के तकरीबन 800 सांसदों को भेजी गई और कलाम भारी बहुमत से 18 जुलाई 2002 को राष्ट्रपति चुन लिए गए. 25 जुलाई को जब कलाम संसद के खचाखच भरे सेंट्रल हॉल में शपथ ले रहे थे तब सभी विशिष्ट अतिथियों के साथ-साथ देश भर से आए सौ बच्चे भी इस समारोह के ख़ास मेहमान थे. शायद पहली बार देश को एक ऐसा राष्ट्रपति मिला, जिसने राष्ट्रपति भवन के दरवाज़े आम आदमी के लिए खोल दिए. सही मायनों में आम आदमी का ख़ास राष्ट्रपति!
(आभार: हार नहीं मानूंगा एक अटल जीवन गाथा, लेखक: विजय त्रिवेदी, प्रकाशक: हार्पर कॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया.)