Saturday, February 28, 2009

मंजिलों से दूर हो गए


(विकास जी हमारी मित्रमंडली में पडरौना का प्रतिनिधित्व करते हैं...बुद्ध की निर्वाणस्थली कुशीनगर से केवल १८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित पडरौना के विकास जी बहुत कुछ कहना चाहते हैं..और आने वाले दिनों में अपनी मदहोश करने वाली लेखनी से इस बगिया को गुलज़ार करेंगे...इनका कवि हृदय बहुत सारे अनछुए पहलुओं पर रोशनी डालता है...तो आइये देखते हैं क्या कुछ बयां किया है विकास जी ने अपने इस पहले इजहार-ए-अंजुमन में )

गम इस बात का नहीं वो हमसे दूर हो गए..

हमसे मिलने के बाद और मशहूर हो गए..

सुना था अपने बुजुर्गों को ये कहते हुए...

सरहद के सीने पर उभरी जो लकीर हम अपनों से बहुत दूर हो गए..

देश तो अपना है मगर लोग पराए से लगते हैं यहां...

ये भी सुना है खिड़कियां दरवाजे पहचानने से मज़बूर हो गए..

जात-पात का ये कैसा जाल फेंका इन नेताओं ने...

देखा है आज भी उन्हें इस गली से साथ-साथ निकलते हुए...

क्या दो जून की रोटी कमाना ही था मकसद विकास का...

कदम ठहर से गए और मंजिलों से दूर हो गए....

विकास यादव

संप्रति- टीवी पत्रकार

तारीख- २८-०२-२००९

मोबाइल- ०९७०४३९०४८५