Saturday, September 25, 2010

बेकल कबीर जैसा था...

सुना है मोमिन व गालिब न मीर जैसा था
 
हमारे गांव का शायर नज़ीर जैसा था

छिड़ेगी दैरो-हरम में ये बहस मेरे बाद

कहेंगे लोग कि बेकल कबीर जैसा था..

सोज़ है हिन्दी का तो उर्दू का इसमें साज़ है...
मेरे साथी गीत का मेरे यही अंदाज़ है...

वह कौशल्या पुत्र है या दशरथ का ताप...
मैं हूं उसकी खोज में जिसका शिवजी करते हैं जाप...

मैं तुलसी का वंशधर अवधपुरी है धाम...
सांस-सांस में सीता बसी, रोम-रोम में राम...

                                                                     बेकल उत्साही