Saturday, September 5, 2015

अतीत का आईना...

रज़िया फंस गई गुंडों में...ये जुमला तो आपको याद ही होगा...यादों के कारवां में आज बात ऐसी रज़िया की होगी, जो गुंडों के बीच नहीं फंसी...बल्कि निहायत ही शरीफ़ और मिलनसार लोगों के बीच फंसी थी...शायद रज़िया को फंसने जैसा एहसास भी नहीं था, वो तो उन चार लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बनकर बेहद ख़ुश थी...ख़ुद की क़िस्मत पर इतरा रही थी...और रज़िया की शान में चार चांद लगाने के लिए ये चार शख़्स दिलो-जां से हाज़िर रहते थे...रज़िया के रखवालों को भी ये पता था कि उनका गुलशन इन्हीं चार की बदौलत आबाद रहता है...अब आप कहेंगे कि इस तस्वीर का रज़िया से क्या ताल्लुक...जनाब निज़ाम के शहर में जब नवाबों के शहर की तहजीब और तमीज़ की आमद हुई, तो ऐसी बहुत सी तस्वीरों की गवाह रज़िया बनी...चलिए अब सस्पेंस को ख़त्म किया जाए...हम बात कर रहे हैं रज़िया कॉटेज की...पूरा पता- C/O, मोहम्मद इदरीस शरीफ़, प्लॉट नंबर- A-209, हिल कॉलोनी, निकट वैलेंटाइन बेकरी, वनस्थलीपुरम्, ज़िला- रंगारेड्डी (आंध्र प्रदेश)...जी हां रामोजी फ़िल्म सिटी में काम करते वक़्त आख़िरी दो साल यही मेरा स्थानीय पता था...हालांकि सुजीत श्रीवास्तव, रामगोपाल द्विवेदी और आशीष निगम रज़िया के पुराने आशिक़ थे...कहने का मतलब कि मुझसे 8 महीने पहले से रज़िया कॉटेज ही उनका डेरा और बसेरा था...जनवरी 2009 में मुझे रज़िया की खिदमत में पेश होने का प्रस्ताव मिला, जिसे में इनकार न कर सका और इन तीनों साथियों के साथ रज़िया का हमसफ़र बन गया...हमारी ज़रूरतों ने रज़िया की अहमियत बढ़ा दी...धीरे-धीरे वो ईटीवी में काम कर रहे हमारे तमाम साथियों के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में रच-बस गई...हमारे लिए रज़िया सुबह-ए-बनारस भी थी और शाम-ए-अवध भी...रज़िया बहुत सारे इकरार की गवाह बनी और कई बार तक़रार को भी बख़ूबी झेला...रज़िया के जीवन में तीन और शख़्स भी इस दौरान आए, हालांकि उनका ये मिलन कम वक़्त का मेहमान रहा...यूपी डेस्क के विक्रम मिश्रा, विश्वनाथ जी और ग्राफिक डिजायनर अजीत ने भी कुछ अरसे के लिए रज़िया की रौनक बढ़ाई...वैसे रज़िया तो हमारे सभी साथियों के लिए पलक-पांवड़े बिछाए तैयार रहती थी...कहने के लिए तो हम चार लोग ही रज़िया कॉटेज की ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे...लेकिन आस-पड़ोस के लोगों को भी शायद ये पता नहीं चल पाता था कि वाकई में कितने लोग रज़िया के दिल में बसते हैं...रज़िया हर किसी को आसानी से ख़ुद में समेट लेती थी...उसके संस्कार ही कुछ ऐसे थे...नीचे हवन का धुआं उठता था और ऊपर क़ुरान की पवित्र आयतों की आवाज़ फ़िज़ा को पाक बना देती थी...वहां ईद की सिंवइयों की मिठास भी थी और होली की गुझिया का स्वाद भी...रज़िया की ये समाजिक और सांस्कृतिक विरासत हमारे लिए हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब की सबसे बड़ी प्रतीक जैसी थी...वैसे तो रज़िया के रखवाले (मकान मालिक) इदरीस भाई थे, लेकिन भरोसा ऐसा था कि कभी ज़रूरत पड़ी, तो रज़िया को हमारे हवाले करने में रत्ती भर भी गुरेज नहीं किया...रज़िया ने बहुत सारी दावतों की भी मेजबानी की... शायद ही कोई दिन ऐसा था जब हमने चार लोगों के लिए खाना बनाया...अगर बना भी तो उसमें हिस्सेदारी करने वालों की संख्या चार से ज़्यादा ही रही...चाय तो रज़िया के यहां सबसे बड़े रिवाज़ में शामिल थी...इस तस्वीर में दिख रहे अग्निवेश शर्मा, सत्येंद्र यादव और अमित सिंह विराट भी एक शाम चाय की इसी रवायत का हिस्सा बने...2010 में ईटीवी को अलविदा कहते वक़्त रज़िया से दूर होना मजबूरी थी... लेकिन आज भी यादों के आईने में जब वनस्थलीपुरम् के इस आशियाने की तस्वीर देखता हूं, तो लगता है कि रज़िया से रिश्ता बहुत पुराना है...

अतीत का आईना...

मान्यताओं के मुताबिक शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक हैदराबाद के पास करनूल ज़िले में स्थित है...उत्तर में ज़्यादातर लोग इसे मल्लिकार्जुन के नाम से जानते हैं, लेकिन अगर आपने हैदराबाद में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग जाने का रास्ता पूछा, तो आपको शायद ही कोई बता पाए...आंध्र प्रदेश में महादेव की ये स्थली श्रीशैलम् के नाम से मशहूर है...हैदराबाद से तक़रीबन 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित श्रीशैलम् बेहद ख़ूबसूरत और प्राकृतिक सौंदर्य की विलक्षण अनुभूति का केंद्र है...हैदराबाद से यहां पहुंचने में क़रीब 5 घंटे लगते हैं...आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का दौरा करने के बाद शिवानंद लहरी की रचना की...हैदराबाद से श्रीशैलम् तक का सफ़र अविस्मरणीय रोमांच से भरपूर है...नल्ला-मल्ला जंगल को पार करते हुए यहां का रास्ता तय किया जाता है...इसके बाद जगह-जगह आपको कृष्णा नदी घाटी का विहंगम नज़ारा देखने को मिलेगा...श्रीशैलम् में कृष्णा नदी को पातालगंगा के नाम से जाना जाता है...ऐसे ही एक रोमांचक सफ़र पर मैं भी निकला था...श्रीशैलम् जाने का दो बार मौक़ा मिला...संयोग की बात ये रही कि दोनों बार सावन महीने में भोले बाबा की चौखट पर पहुंचा...श्रीशैलम् की यात्रा में एक बड़ा आकर्षण का केंद्र श्रीशैलम् पावर प्रोजेक्ट भी है...पूरे सफ़र में आपको प्रकृति के ऐसे मनोरम नज़ारे दिखेंगे, जो आप भुला नहीं पाएंगे...उत्तर का कैलाश तो नहीं देखा, लेकिन दक्षिण के कैलाश यानी श्रीशैलम् को देखा और महसूस किया...वाकई ये ऐसी अनोखी जगह है, जहां एक बार पहुंचने के बाद आप बार-बार जाने की हसरत रखेंगे...

अतीत का आईना...

रामोजी फ़िल्म सिटी में एक बड़ा आकर्षण फ़िल्मों की शूटिंग को लेकर होता था...कभी रात में शूटिंग का मज़ा लीजिए, कभी दिन में...एक दिन मैं भी इसी उत्साह में ईटीवी बिल्डिंग के पीछे बने एयरपोर्ट के सेट के पास पहुंच गया...पता चला कि रोहित शेट्टी की फ़िल्म ऑल द बेस्ट के गाने की शूटिंग चल रही है...अब भला संजू बाबा को क़रीब से देखने का मौक़ा कैसे गंवाता...लिहाजा मैं भी दर्शक दीर्घा का हिस्सा बनने पहुंच गया...ये फोटो मैंने अपने मोबाइल से ली थी, वो भी बड़े दिलचस्प तरीक़े से...दरअसल तस्वीर में जो कैमरा दिख रहा है, इसको ज़ूम चैनल के कैमरामैन संभाल रहे थे...मैंने भी बग़ैर देरी किए कैमरामैन के कंधे पर हाथ रखकर फोटो खींच ली...तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि अगर प्रबंधन को पता चल गया कि आप शूटिंग देखने में मशगूल हैं, तो अनुशासनात्मक कार्रवाई का भी सामना करना पड़ सकता था...लेकिन ज़्यादातर साथी इसकी परवाह नहीं करते थे...एक और बात फ़िल्म सिटी के ज़्यादातर लोकेशन ईटीवी में काम करने वाले लोग आसानी से पहचान लेते हैं...क्योंकि बहुत सारे लोकेशन तो रोज़ बस से फिल्म सिटी में प्रवेश करते ही दिख जाते थे...ऐसे में बॉलीवुड हो या टॉलीवुड की फ़िल्म, सीन देखते ही ज़्यादातर साथी भांप जाएंगे कि सहारा के पास कौन सी शूटिंग हुई और तारा-सितारा पर किसकी...एक और दिलचस्प वाकया सरकार राज फिल्म को देखते वक्त हुआ...मूवी में एक जगह अभिषेक बच्चन प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं, लेकिन सारी चैनल आईडी एक ही चैनल यानी ईनाडु की थीं...हॉल का नाम भी बता देता हूं, वही अपना सुषमा सिनेमा हॉल...ख़ास बात ये थी कि फ़िल्म देखने वाले ज़्यादातर लोग भी वहां ईटीवी से ही आए थे...सुषमा अब भी रामोजी फ़िल्म सिटी के लोगों का मनोरंजन केंद्र बना हुआ है...