Saturday, September 25, 2010

बेकल कबीर जैसा था...

सुना है मोमिन व गालिब न मीर जैसा था
 
हमारे गांव का शायर नज़ीर जैसा था

छिड़ेगी दैरो-हरम में ये बहस मेरे बाद

कहेंगे लोग कि बेकल कबीर जैसा था..

सोज़ है हिन्दी का तो उर्दू का इसमें साज़ है...
मेरे साथी गीत का मेरे यही अंदाज़ है...

वह कौशल्या पुत्र है या दशरथ का ताप...
मैं हूं उसकी खोज में जिसका शिवजी करते हैं जाप...

मैं तुलसी का वंशधर अवधपुरी है धाम...
सांस-सांस में सीता बसी, रोम-रोम में राम...

                                                                     बेकल उत्साही

Sunday, June 13, 2010

लखनऊ की शिगूफाई...

ग़रीब सीता के घर पे कब तक रावण की हुक्मरानी रहेगी...
द्रौपदी का लिबास कब तक उसके बदन से उतरा करेगा...
शकुंतला कब तक अंधी तक़दीर के भंवर में फंसा करेगी...
ये लखनऊ की शिगूफाई मक़बरों में कब तक दबी रहेगी...

अली सरदार जाफरी
अवध की ख़ाक-ए-हसीन से लिया गया अंश...

Friday, April 16, 2010

सितारों से आगे जहां और भी हैं...

सितारों से आगे जहां और भी हैं...


अभी इश्क में इम्तिहां और भी हैं...

तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएं...

यहां सैकड़ों कारवां और भी हैं...

क़ायनात ना कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर...

चमन और भी आशियां और भी हैं...

अगर खो गया एक नश-ए-मन तो क्या ग़म...

मकामात-ए-आह-ओ-फुगां और भी हैं...

तू सही है परवाज़ है काम तेरा...

तेरे सामने आसमां और भी हैं...

इसी रोज़-ओ-शब में उलझकर ना रह जा...

कि तेरे ज़मीन-ओ-मकान और भी हैं...

गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में...

यहां अब मेरे राज़दां और भी हैं...