गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
क्या उससे किसी क़ौम की तक़दीर बदल दोगे
जो अक्स उभरता है रसखान की नज़्मों से
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे
जायस से हिंदी की दरिया जो बहके आई
मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे
क्या सच है देशमुख के कहने से विशेषज्ञों
मुमताज़ के ख़्वाबों की ताबीर बदल दोगे
तारीख बताती है तुम तो भी लुटेरे हो
क्या द्रविड़ों से छीनी हुई जागीर बदल दोगे।
अदम गोंडवी (जनकवि)
No comments:
Post a Comment