Sunday, August 16, 2009

हम आज़ाद हैं!
















काजू भुनी प्लेट में व्हिस्की गिलास में, उतरा है रामराज विधायक निवास में.


पक्के समाजवादी हैं चाहे तस्कर हों या डकैत, इतना असर है खादी के उज़ले लिबास में.


पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें, संसद यहां की बदल गई है नख्ख़ास में.


आज़ादी का जश्न मनाएं तो किस तरह जो फुटपाथ पर आ गए घर की तलाश में...


देशभर में आज़ादी की बासठवीं सालगिरह का जश्न जोर-शोर से मनाया गया. ऐसे वक्त में मुझे मशहूर शायर अदम गोंडवी की ऊपर लिखी लाइनें फिर से याद आ गईं.एक बार फिर से देशभक्ति का जज्बा लोगों के दिलों में जमकर हिलोरें मारने के बाद ठंडा पड़ गया.हममें से ज्यादातर के लिए ये आज़ादी तो उसी तरह आई जैसे अंधे के हाथ में बटेर.हमने आज़ाद भारत में आंखें खोलीं.और वक्त गुजरने के साथ ही आज़ादी का मतलब अपने-अपने ढंग से निकाला.हम बदस्तूर ढिंढोरा पीटते रहे कि हम आज़ाद हैं.हम आज़ाद हैं.हमारे जैसे बहुत सारे युवा अपने छात्र जीवन के दौरान यहां तक कि अभी भी ट्रेन में मुफ्त सफर करने को अपनी जीत मानते हैं क्योंकि हम आज़ाद हैं.हम बस में यात्रा के दौरान किसी बड़े-बूढ़े के आने पर अपनी सीट खाली नहीं करते हैं और वो भी तब जबकि हम आसानी से खड़े होकर सफर पूरा कर सकते हैं क्योंकि हम आज़ाद हैं.हम कहीं भी दैनिक क्रिया से निवृत्त हो लेते हैं क्योंकि हम आज़ाद जो ठहरे.हम टैक्स चुराते हैं क्योंकि हम आज़ाद हैं.हमको बिना ड्राइविंग लाइसेंस के गाड़ी चलाने में मज़ा आता है क्योंकि हम तो ठहरे आज़ाद पंछी. हम लाइन में लगना अपनी शान में गुस्ताख़ी समझते हैं क्योंकि हम आज़ाद हैं.हम मौका मिलते ही राह चलती किसी लड़की या महिला पर फब्तियां कसने से नहीं चूकते.यहां तक कि थोड़ी सी छूट मिली तो सारी हदें पार करने तक पर उतारू हो जाते हैं क्योंकि हमें प्यारी है अपनी आज़ादी.चाहे सड़क हो या स्कूल.सिनेमाहॉल हो या कोई पब्लिक प्लेस.जहां कहीं भी लिखा होता है कि कृपया यहां ना थूकें हम पान या गुटखे का पीक स्प्रे करने से बाज़ नहीं आते.क्योंकि हम आज़ाद हैं.नो स्मोकिंग जोन में हम कहीं भी सिगरेट सुलगा लेते हैं.क्योंकि हम आज़ाद हैं.हममें से बहुत सारे लोग बड़े-बुज़ुर्गों को ऐसे समय में अनाथ आश्रम में डाल देते हैं.जब उन्हें सहारे की सख़्त ज़रूरत होती है.क्योंकि उनके रहने से हमारी आज़ादी में खलल पड़ता है फिर भी हम कहते हैं कि हम आज़ाद हैं.उज्जैन से लेकर लखनऊ तक हम गुरुजनों पर करते हैं जानलेवा हमले.क्योंकि हम आज़ाद हैं.हम रिश्वत देते भी हैं और रिश्वत लेते भी हैं.क्योंकि हम आज़ाद हैं.किसी को कुछ भी कह देना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है.क्योंकि हमें देश के संविधान ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो दी है.कोई गांधी को शैतान और माफ़िया तक कह डालता है.क्योंकि हम आज़ाद हैं.हम जगदगुरु शंकराचार्य को अकर्मण्य और खुद को कर्मयोगी बताते हैं.क्योंकि हम आज़ाद हैं.हम पंजाब को आतंकवाद की आग में झोंकने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले की फोटो स्वर्ण मंदिर परिसर के म्यूज़ियम में लगाते हैं.क्योंकि हम आज़ाद हैं.हम महात्मा गांधी,सुभाष चंद्र बोस,भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद,अशफाक या बिस्मिल के बजाय भ्रष्ट नेताओं की तस्वीर अपने घर में लगाते हैं.क्योंकि हम आज़ाद हैं.हम बात तो करते हैं शहीदों की चिताओं पर मेले लगने की लेकिन मौक़ा मिलते ही उनके ताबूतों की ख़रीद में भी दलाली खाने से नहीं चूकते हैं.क्योंकि हम आज़ाद हैं.हर साल छब्बीस जनवरी औऱ पंद्रह अगस्त को हम तिरंगा झंडा फहराने की खानापूर्ति करते हैं.औऱ शान से कहते हैं कि झंडा ऊंचा रहे हमारा.क्योंकि हम तो ठहरे आज़ाद हिंदुस्तान के आज़ाद नागरिक.अगर आज़ादी के मायने यही हैं तो ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या वाक़ई हम आज़ाद हैं??? अपने ही शहर के अज़ीम फ़नकार अली सरदार जाफरी के इन अल्फाज़ के साथ आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की दिली मुबारकबाद...


कौन आज़ाद हुआ किसके माथे से ग़ुलामी की सियाही छूटी...


मेरे सीने में अभी दर्द है महक़ूमी का मादर-ए-हिन्द के चेहरे पे उदासी है वही।




संप्रति- सुधाकर सिंह

टीवी पत्रकार

मोबाइल- 09010823314, 09396582442

दिनांक- 15 अगस्त 2009

3 comments:

Anonymous said...

अदम गोंडवी साहब की चार लाईनों ने ये पोस्ट लाज़वाब कर दी...

Sundip Kumar Singh said...

sahi kaha janab,,yahi hai hamari azadi ke mayne aaj ke wakt mein....

Unknown said...

सुधाकर भाई क्या हुआ, सब ठीक तो है ना.....शिवम्