Sunday, August 23, 2009

गणपति बप्पा मोरया





आज से गणेश पूजा का दस दिवसीय उत्सव शुरू हो चुका है.सभी साथियों को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं.मैं आज यूपी डेस्क के अपने सहयोगी के यहां डिनर पर आया हूं. बहुत दिनों बाद मौक़ा लगा है किसी मित्र के यहां भोजन का. ख़ैर भोजन के अलावा भी कुछ है बताने के लिए. मैं निज़ामशाही की यादों को संजोए शहर हैदराबाद के बाहरी इलाक़े में रहता हूं. ये जगह वनस्थलीपुरम के नाम से जानी जाती है. जोकि नेशनल हाइवे संख्या-९ पर स्थित है.ये रास्ता विजयवाड़ा को जाता है.और मैं देश के बड़े टेलीविज़न नेटवर्क में शुमार ईटीवी में काम करता हूं.जिसका हेडक्वार्टर इसी हाइवे पर रामोजी फ़िल्मसिटी में है. इन दिनों रोज़ जब मैं बस से अपने ऑफिस के लिए जाता था. तो सुषमा इलाके से थोड़ा आगे चलते ही बड़ी लगन और मेहनत से काम करते कारीगरों को गणपति की प्रतिमा बनाते देखता था. आज उनकी मेहनत सार्थक हो चुकी है.और गणेशजी की भव्य प्रतिमाएं जगह-जगह स्थापित हो चुकी हैं. इस रास्ते से गुजरते हुए दिन-बदिन मैंने इन मूर्तियों में बदलाव होते देखा.पहले उनका सांचा तैयार हुआ.फिर उसमें मूर्तियों को ढाला गया.और सबसे आख़िर में उनका रंग-रोगन किया गया. अब जबकि इन हुनरमंदों का काम ख़त्म हो चुका है.सवाल ये उठता है कि आगे ये कारीगर क्या करेंगे.क्योंकि गणेश पूजा का उत्सव तो अब एक साल बाद ही आएगा. देश में ऐसे ही तमाम लोग हैं जो सीज़नल आयोजन के लिए काम करते हैं.लेकिन बाद में बेकार हो जाते हैं.इन हुनरमंदों को वैकल्पिक काम देने की ज़रूरत है.सबसे सही तरीका है. नरेगा यानी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना से इन कारीगरों को जोड़ा जाए.अब बात नरेगा की हो रही है.तो थोड़ा इस पर भी बात कर लें. बीस अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती थी.और इस मौक़े पर दिल्ली में नरेगा पर एक राष्ट्रीय वर्कशॉप हुई.कार्यक्रम में देश के ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री सीपी जोशी ने राजीव जी के सपनों को साकार करने की बात कही. राजीव जी का सपना था हर हाथ को मिले काम और घर-घर में हो खुशहाली.ये बात ठीक है कि जोशी जी इस दिशा में काफी गंभीर हैं.और यथासंभव क़दम उठा रहे हैं.लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है नरेगा की निगरानी.जिसके लिए अभी तक कोई ख़ास पहल नहीं की गई है. हमारे देश के ग्रामीण इलाकों में जो तंत्र विकसित हो चुका है.उसमें इस योजना का दुरुपयोग भी जमकर हो रहा है.ग्राम पंचायत के प्रधान और सचिव मिलकर पैसे की बंदरबांट कर रहे हैं.यहीं नहीं उच्चाधिकारियों की भी इसमें मिलीभगत है.जिस भी ग्रामीण को काम मिल रहा है.उसके पास तक पूरी मज़दूरी पहुंच रही है कि नहीं ये एक अहम सवाल है.ज्यादातर लोग जो काम कर रहे हैं.उनमें अनपढ़ ग्रामीणों की तादाद ज़्यादा है.ऐसे में उनसे कुछ भी बताकर अंगूठा लगवा लिया जाता है. एक और पहलू है मज़दूरी की असमानता का...क्योंकि किसी राज्य में एक कार्यदिवस की मज़दूरी एक सौ चालीस रुपये तक है तो कहीं चालीस रुपये से भी कम है.हालांकि केंद्र सरकार का निर्देश है कि न्यूनतम साठ रुपये मज़दूरी मिलनी ही चाहिए.लेकिन इसकी जांच कौन कर रहा है. सीपी जोशी नरेगा कोर्ट की भी बात कर रहे हैं. लेकिन जोशी जी के सपने देखने से ही काम नहीं चलेगा.कुछ ठोस क़दम उठाते हुए उन्हें अमली जामा पहनाने की भी ज़रूरत है.जिससे नरेगा की तगड़ी मॉनिटरिंग भी हो सके. क्योंकि किसी ने ठीक कहा है कि सपने वो नहीं होते जो आप सोते समय देखते हैं...सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते. अब जोशी जी नींद वाले सपने देखने की उधेड़बुन में हैं.या फिर राजीव जी के सपनों को हक़ीकत में बदलने के लिए जोर-शोर से जुटेंगे. इसका हमें बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.

संप्रति- सुधाकर सिंह
टीवी पत्रकार
दिनांक- 23 अगस्त 2009
मोबाइल- 09010823314/ 09396582442

1 comment:

समयचक्र said...

गणपति बब्बा मोरिया शुभकामनाओ के साथ